सोमवार, 6 नवंबर 2017

कब कहा मैनें?

कब कहा मैंने
कि मेरे आँसुओ को थामों तुम।
मगर मैं उदास क्यों
ये पूछ तो लिया होता....

कब कहा मैंने
मेरे दामन में चाँद तारे भरो।
मगर एक गुलाब यूँही कभी
लाके दे दिया होता....

कब कहा मैंने
तुम्हे छोड़ चली जाऊंगी।
मगर रुठ जो गई कभी
हँस कर मना लिया होता....

कब कहा मैंने
मेरा साया तुम बनों हरदम।
मगर तन्हाइयों में मेरा
साथ तो दिया होता...

कब कहा मैंने
कि हर पल तुम मेरे साथ चलो।
मगर जब भी लडख़ड़ाए कदम
थाम तो लिया होता....

शनिवार, 13 मई 2017

माँ!

तुमसे बिछड़ते हुए माँ!
तुम्हारी जुबाँ तो कहती है अलविदा
पर आंखे कहती हैं,
"करती रहूँगी इंतज़ार,
तेरे लौट आने तक...."
जाने क्यों
दरवाजे पर खड़े होकर
तुम्हारा अपलक देखना
मेरे ओझल हो जाने तक,
नम कर जाता है
मेरी भी पलकों को।

बुधवार, 19 अप्रैल 2017

"....और तुम्हारी याद"

आज मैं छत पर अकेले और तुम्हारी याद।
पर तेरे सन्दर्भ में हैं बन्द अब संवाद।।

साथ तेरे बैठ कर वो ख्वाहिशें बुनना ।
गुनगुनाना वो तेरा और मेरा सुनना।।
छुट्टियों की दोपहर फिर शरारत एक नई।
गुदगुदी हँसती हँसाती, होती शामें सुरमई।।
रात में संग लेटकर, फुसफुसाना और हँसना।
नींद आती जब हमें तो साथ लाती मधुर सपना।।

छिन गया पल जो था स्वर्णिम ख्वाहिशें बर्बाद।
आज मैं छत पर अकेले और तुम्हारी याद।।

कुछ सुमन थे कुछ थी कलियाँ पर नहीं थे शूल।
पर न जाने क्या हुआ शायद हुई कुछ भूल।।
हो गयी रातें भयावह दानवी सी दोपहर।
शामें भी सुरमई ना हैं, ढा रही हैं वो कहर।।
अब नहीं कुछ पास मेरे बस हैं कुछ लम्हे उदास।
क्या कहूँ मैं ना हुआ था बिछड़ने का पूर्वाभास।।

किससे कहूँ मैं बात दिल की अब तुम्हारे बाद।
आज मैं छत पर अकेले और तुम्हारी याद।।

सोमवार, 10 अप्रैल 2017

".....तो फिर कहना होगा"

नहीं पढ़ सकूँगी मैं साथी!
बस दो नयनों की भाषा को,
तुम करते हो प्यार अगर मुझसे
         तो फिर कहना होगा।

नहीं बदल पाऊंगी खुद को
मैं जो हूँ और जैसी भी हूँ।
तुम करते हो स्वीकार अगर मुझको
         तो फिर कहना होगा।

नहीं बाँधूँगी बन्धन क्षणभंगुर
मगर उम्र भर की ख़ातिर,
करते हो अंगीकार अगर मुझको
          तो फिर कहना होगा।

गुरुवार, 16 मार्च 2017

सच और झूठ

        "सच"

न कभी कहा जायेगा।
न कभी सुना जायेगा।
कभी कभी तो
लगता है
हमारी अगली नस्ल
आँखे बड़ी करके कहेगी
"बरसों पहले
लोग बोलते थे सच।"

       "झूठ"

कितनी दूर दूर तक
फैल चुका है कारोबार।
सोने, चाँदी, कपड़े
नहीं
"झूठ" का।
बिना पूँजी लगाए
दिनों-दिन प्रगति पर है
यह धंधा।

गुरुवार, 9 मार्च 2017

काश!!!

ज़िन्दगी लेती है परीक्षा
हमारे धैर्य की,
हमारे विश्वास की,
हमारी सहनशीलता की।
ज़िन्दगी छीन लेती है हमारी खुशियाँ
और फिर
देखना चाहती है हमारे आँसू
रो लो,
जितना कि रो सको।
दर्द सहो,
जितना कि सह सको।
ज़िन्दगी
उन अपनों के लिए
तड़पा देती है
जो हमारे लिए बने थे।
ज़िन्दगी
उन सुख भरे क्षणों के लिए
तरसा देती है
जो हमारे हिस्से के थे।
हम हमेशा ज़िन्दगी के बताए रास्ते पर
चल पड़ते हैं।
काश!!!
कभी ज़िन्दगी भी चलती
हमारे मन मुताबिक।

रविवार, 26 फ़रवरी 2017

मृत्यु-गीत

विधि का ये दारुण वज्रपात।
कैसे हृदय करे बर्दाश्त।
मृत्यु शैय्या पर लेटा था।,
मुस्काते देखा जिसे रात।

नितांत अकेले छोड़ चला।
वो दुनिया से मुँह मोड़ चला।
सातों जन्मों के बन्धन को,
इस जन्म में ही वो तोड़ चला।।

सिन्दूर पुछा, टूटी चूड़ी
विधवा बन बैठी सखि मेरी।
कभी फूट फूट कर रोती थी,
कभी बेसुध होती सखि मेरी।

माँ के रोने से रोती थी,
गोदी में डरी डरी बिटिया!
नादान समझ भी ना पाई
आखिर ऐसा क्या आज हुआ।।

सब किया बनी वो 'सावित्री',
अपने 'सत्यवान' को बचाने को।
पर दया न आई ईश्वर को,
भेजा यमराज लिवाने को।।

सारे व्रत-पूजा की उसने,
हर मंदिर पर की थी फ़रियाद।
पर आज गवाँ सबकुछ अपना ,
नास्तिक बन बैठी बदहवास।।

बीवी और बच्ची की ख़ातिर
उसने देखे कितने सपने।
पर अपना कल ना देख सका,
सपने हो नहीं सके अपने।।

मिलता था तब वो कहता था,
"बीतेगी शाम, सहर होगा।
इस बड़े शहर में छोटा सा
मेरा अपना एक घर होगा"।।

सपनों को मूँदे आँखों में
चिर-निद्रा में ऐसा सोया।
उसकी अंतिम यात्रा में
फूट-फूट कर जग रोया।।

"जो होता है अच्छा होता",
इन बातों से विश्वास उठा।
निष्ठुरता देख नियति की तो
मेरा अंतर्मन काँप उठा।।