सोमवार, 30 जनवरी 2017

भोजपुरी दोहे

जियते पर कछु ना दिए, मरनी पर करें दान।
अउर पूछै तौ कहत हैं, तर हो जइहैं प्रान।।

बृद्ध के भुखै मारि के, मृत्यु पर दें भोज।
अइसन पापी आज के,कइसे होइहें सोझ।।

पहिले तौ झपिलाइके करत रहत थे बात।
मरले पीछे काहे कि अँसुवन के बरसात।।

सीत लहरी में काँपते, रहे 'बाप' के प्रान।
पंडित के उ करत हैं धोती कम्बल दान।।

हरदम उनको भूलत, 'माई' के हर काम।
तेरहीं पर उ देत हैं भर कोठरी सामान।।

आजु हमरी अँखियन से दरद क हौ बरसात।
"दुनियाँ क इ रीत" तौ दिल पर करे आघात।।

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

लाल गुलाब

कितनी बार गिरी,टकराई।
कदम बढ़े तो ठोकर खाई।
फिर भी पलकें संजो रही हैं,
छुप छुप कर कुछ ख्वाब।

सुख-दुख की परछाई जीवन।
मैं क्यों मलिन करूँ अपना मन?
सुख के क्षण ना गिने कभी,
दुःख का क्यों करूँ हिसाब?

कसतें हैं तानें तो कस लें।
लोग अगर हँसतें हैं हँस लें।
काँटों संग मुस्काने वाली,
मैं   तो    "लाल गुलाब"।

बुधवार, 25 जनवरी 2017

"वीर शहीदों की खातिर......"

गाया गीत स्वतंत्रता का,भाषण भी बहुत दिया।
पर वीर शहीदों की खातिर क्या हमने कुछ भी किया?
       वृद्ध पिता आश्रित था जिस पर
             नहीं रहा बेटे का साथ।
        एक फटी चादर में सिकुड़कर
             काट रहा सर्दी की रात।।
भवनों पर टांगने खातिर, झंडा बहुत सिया।
पर वीर शहीदों की खातिर क्या हमने कुछ भी किया?
         आए किसी की भी चिट्ठी
          बस इंतजार में रहती है।
         "मैंने पढ़ा ये बबुआ का है"
          वो 'अनपढ़ माँ' कहती है।
अपनों तक ही सीमित रह गया,जो भी लिया दिया।
पर वीर शहीदों की खातिर क्या हमने कुछ भी किया?
        सूनी मांग सा सूना जीवन
        वो सोच सोच कर रोती है।
         एक शहीद की विधवा
      आज लोगों की जूठन धोती है।
आजादी के समारोह में चंदा बहुत दिया।
पर वीर शहीदों की खातिर क्या हमने कुछ भी किया?
      राखी के दिन छुपकर बहना
       तस्वीरों से बतियाती है।
     कैसे भूले? उसे वीर की याद
          बहुत ही सताती है।
अपनी बहनों को तो सबने तोहफा बहुत दिया ।
पर वीर शहीदों की खातिर क्या हमने कुछ भी किया?
      जीत गया है देश मगर
   शायद एक बच्चा हार गया।
       हाय दैव! उसके हिस्से से
   आज पिता का प्यार गया।
जो भी मदद की सरकारों ने,औरों ने छीन लिया।
फिर वीर शहीदों की खातिर क्या हमने कुछ भी किया?

गजल

आते-जाते रहगुजरों पर मिले बहुत से लोग मगर,
दिल में अब तक बसें हैं कितने,ये जानना जरूरी है।

तकतीं रहीं अम्बर को आँखे, बादल आकर चले गए।
सावन क्यों अब तक सूना है ये जानना जरूरी है।।

दूर से तो चाँद सभी को, महबूब सरीखा दिखता है,
लेकिन उसपर दाग हैं कितने ये जानना जरूरी है।

बेटी ने हर चौखट पर तो फर्ज निभाएं हैं अबतक,
हक में उसके क्या आया है ये जानना जरूरी है।

मौत हमारे दरवाजे पर दस्तक दे क्यों लौट गई?
दुआ में किसकी असर था इतना ये जानना जरूरी है।

वतन के लिए कुर्बां हो गए, उन जांबांजो के बच्चे
हमदर्दी में कहाँ गुम हुए ये जानना जरूरी है।

नजर उठाकर लाजवाब कर देने का दम रखकर भी,
क्योंकर "कृति" खामोश हो गई ये जानना जरूरी है।

शनिवार, 7 जनवरी 2017

तीली

चिराग जला लेने के बाद
माचिस की तीली को
कुचल दिया जाता है
बड़ी बेरहमी से।
कभी सोचा है
सत्तासीन लोग
इस्तेमाल करते हैं
हमें भी
बिल्कुल इसी तरह।

गुरुवार, 5 जनवरी 2017

क्या लिया संकल्प तुमने

आ गया नववर्ष साथी।
जल चुके हैं दीप-बाती।
किन्तु इस स्वर्णिम सुबह पर,
क्या लिया संकल्प तुमने?

वक्त यूँ ना बीत जाये।
जागृति जीवन में आये।
वर्ष के शुभ आगमन पर,
क्या लिया संकल्प तुमने?

आज पुलकित सी पवन है,
और हर्षित ये गगन है।
नव जलद, नव रश्मियों पर,
क्या लिया संकल्प तुमने?

प्रारब्ध पर निर्भर ना होना।
कर्म का अवसर ना खोना।
प्रगति की नव-वीथिका पर,
क्या लिया संकल्प तुमने?