बुधवार, 25 जनवरी 2017

"वीर शहीदों की खातिर......"

गाया गीत स्वतंत्रता का,भाषण भी बहुत दिया।
पर वीर शहीदों की खातिर क्या हमने कुछ भी किया?
       वृद्ध पिता आश्रित था जिस पर
             नहीं रहा बेटे का साथ।
        एक फटी चादर में सिकुड़कर
             काट रहा सर्दी की रात।।
भवनों पर टांगने खातिर, झंडा बहुत सिया।
पर वीर शहीदों की खातिर क्या हमने कुछ भी किया?
         आए किसी की भी चिट्ठी
          बस इंतजार में रहती है।
         "मैंने पढ़ा ये बबुआ का है"
          वो 'अनपढ़ माँ' कहती है।
अपनों तक ही सीमित रह गया,जो भी लिया दिया।
पर वीर शहीदों की खातिर क्या हमने कुछ भी किया?
        सूनी मांग सा सूना जीवन
        वो सोच सोच कर रोती है।
         एक शहीद की विधवा
      आज लोगों की जूठन धोती है।
आजादी के समारोह में चंदा बहुत दिया।
पर वीर शहीदों की खातिर क्या हमने कुछ भी किया?
      राखी के दिन छुपकर बहना
       तस्वीरों से बतियाती है।
     कैसे भूले? उसे वीर की याद
          बहुत ही सताती है।
अपनी बहनों को तो सबने तोहफा बहुत दिया ।
पर वीर शहीदों की खातिर क्या हमने कुछ भी किया?
      जीत गया है देश मगर
   शायद एक बच्चा हार गया।
       हाय दैव! उसके हिस्से से
   आज पिता का प्यार गया।
जो भी मदद की सरकारों ने,औरों ने छीन लिया।
फिर वीर शहीदों की खातिर क्या हमने कुछ भी किया?

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