कृति की कविताएं
गुरुवार, 29 दिसंबर 2016
अनुकूलन
अपनी जड़ों से उखाड़कर
उसे लगाया जा रहा है
एक स्थान से
दूसरे स्थान पर।
नई हवा,
नई मिट्टी,
नई धुप में कर लेगी अनुकूलन
या फिर
मुरझा जाएगी
एक हरी भरी पौध।
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